रहस्य-रोमांच >> कानून का बेटा कानून का बेटावेद प्रकाश शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
और एक दिन।
समूची दिल्ली में जैसे तूफान आ गया।
इस तूफान का सबसे पहला झोंका लोगों ने सुबह...आंख खुलते ही समाचार-पत्रों के माध्यम से महसूस किया। प्रत्येक अखबार में मुख्य पृष्ठ पर विज्ञापन था।
‘पंडित सेविंग्स एण्ड फाइनेंस कम्पनी।’
लोग अभी विज्ञापन के विस्तार और स्कीम को पढ़े ही रहे थे कि -
रेडियो-ट्रांजिस्टर चीख पड़े - ‘पंडित सेविंग्स एण्ड फाइनेंस कम्पनी के सदस्य बनिए और भरपूर लाभ कमाइए - एक बार, सिर्फ एक बार चौरासी महीने के लिए दो सौ रुपए पंडित फाइनेंस में जमा कीजिए और हर महीने, निकलने वाले इनामों के ‘‘लकी ड्रॉ’’ में हिस्सा लीजिए।’
एक नारी स्वर-‘और चौरासी महीने बाद दो सौ के दो सौ रुपए वापस - अरे, वाह...इसमें नुकसान कहा है-ऐ जी, सुनो - ऑफिस से लौटते वक्त पंडित फाइनेंस के सदस्य जरूर बनते आना।’
पुरुष की आवाज - ‘दो सौ रुपए की बात करती हो भगवान, महीने का आखिर चल रहा है, मेरी जेब में दो कौड़ी भी नहीं है।’
‘अरे चिन्ता क्यों करते हो, मैं अभी लाई।’ महिला स्वर - ऐसी स्कीम के लिए तो मैं अपने गहने तक बेचकर पैसे दे सकती हूं।’
विज्ञापन खत्म होने का संगीत।
लोग घर से दफ्तर, दुकान या दैनिक मजदूरी के लिए निकले तो प्रमुख चौराहों पर ‘पंडित फाइनेंस एण्ड सेविंग्स’ के बड़े-बड़े होल्डिंग्स उन्हें अपनी ओर खींच रहे थे।
दीवारों पर बड़े आकार के चार रंग वाले पोस्टर।
और जगह-जगह।
छोटे-छोटे बच्चे बांट रहे थे-पम्फलेट। ऑफिस में जाकर पत्रिका खोली तो-पहला पेज ‘पंडित फाईनेंस’ का।
शाम को। चित्रहार के चौथे गाने से पहले।
जल्दी-जल्दी कपड़े पहन रहे एक पति से पत्नी ने कहा - ‘अरे...अरे...बड़ी जल्दी में हो, मेरी किसी सौत को टाइम दे रखा है क्या ?’
‘नहीं भागवान।’ पति महोदय बोले - ‘पंडित फाइनेंस’ का सदस्य बनने जा रहा हूं, सदस्यता फॉर्म खत्म हो गए तो मैं बेकार रह जाऊंगा।’
‘बेकार ?’
‘हां, हर दो महीने बाद होने वाले पंडित फाइनेंस के ‘लकी ड्रा’ में एक कार निकलती है - सदस्य बनने के बाद ही तो मैं ‘कार वाला’ बन सकूंगा।’
और चित्रहार का पांचवा गाना शुरू।
दर्शक अभी तक ‘पंडित फाइनेंस’ के बारे में ही सोच रहे हैं। रात को, सोने से पहले। रेडियो-ट्रांजिस्टर पर लोगों ने एक बार पुनः सुबह वाले डायलॉग्स सुन लिए।
गर्ज यह कि - पंडित फाइनेंसर्स का नाम और उसकी आकर्षक स्कीम जबरदस्ती लोगों के जेहन में ठूंसी जाने लगी-यह क्रम एक महीने तक चला और एक महीने बाद सारी दिल्ली जानती थी कि दिल्ली में ‘पंडित फाइनेंस’ है।
एक ऐसी संस्था जो सिर्फ एक बार लिए गए दो सौ भी रुपए के ब्याज के बदले हर सदस्य को चौरासी महीने तक लगातार हर महीने निकलने वाले ‘लकी ड्रा’ में चांस देती है - हर महीने होने वाले ड्रा में आकर्षक इनाम हैं और हर दो महीने में विशेष आकर्षण-मारुति डीलक्स।
स्कीम का विस्तार यानी जो कागज केशव ने साजिद आदि को दिखाया था। उसकी नकल अगले पृष्ठ पर दी जा रही है-आजकल इसी मैटर के पम्फलेट, होल्डिंग्स पोस्टर और पर्दों से पूरी दिल्ली अटी पड़ी है।
सुबह का अखबार हो या शाम का। पहले पेज पर विज्ञापन जरूर होगा।
समूची दिल्ली में जैसे तूफान आ गया।
इस तूफान का सबसे पहला झोंका लोगों ने सुबह...आंख खुलते ही समाचार-पत्रों के माध्यम से महसूस किया। प्रत्येक अखबार में मुख्य पृष्ठ पर विज्ञापन था।
‘पंडित सेविंग्स एण्ड फाइनेंस कम्पनी।’
लोग अभी विज्ञापन के विस्तार और स्कीम को पढ़े ही रहे थे कि -
रेडियो-ट्रांजिस्टर चीख पड़े - ‘पंडित सेविंग्स एण्ड फाइनेंस कम्पनी के सदस्य बनिए और भरपूर लाभ कमाइए - एक बार, सिर्फ एक बार चौरासी महीने के लिए दो सौ रुपए पंडित फाइनेंस में जमा कीजिए और हर महीने, निकलने वाले इनामों के ‘‘लकी ड्रॉ’’ में हिस्सा लीजिए।’
एक नारी स्वर-‘और चौरासी महीने बाद दो सौ के दो सौ रुपए वापस - अरे, वाह...इसमें नुकसान कहा है-ऐ जी, सुनो - ऑफिस से लौटते वक्त पंडित फाइनेंस के सदस्य जरूर बनते आना।’
पुरुष की आवाज - ‘दो सौ रुपए की बात करती हो भगवान, महीने का आखिर चल रहा है, मेरी जेब में दो कौड़ी भी नहीं है।’
‘अरे चिन्ता क्यों करते हो, मैं अभी लाई।’ महिला स्वर - ऐसी स्कीम के लिए तो मैं अपने गहने तक बेचकर पैसे दे सकती हूं।’
विज्ञापन खत्म होने का संगीत।
लोग घर से दफ्तर, दुकान या दैनिक मजदूरी के लिए निकले तो प्रमुख चौराहों पर ‘पंडित फाइनेंस एण्ड सेविंग्स’ के बड़े-बड़े होल्डिंग्स उन्हें अपनी ओर खींच रहे थे।
दीवारों पर बड़े आकार के चार रंग वाले पोस्टर।
और जगह-जगह।
छोटे-छोटे बच्चे बांट रहे थे-पम्फलेट। ऑफिस में जाकर पत्रिका खोली तो-पहला पेज ‘पंडित फाईनेंस’ का।
शाम को। चित्रहार के चौथे गाने से पहले।
जल्दी-जल्दी कपड़े पहन रहे एक पति से पत्नी ने कहा - ‘अरे...अरे...बड़ी जल्दी में हो, मेरी किसी सौत को टाइम दे रखा है क्या ?’
‘नहीं भागवान।’ पति महोदय बोले - ‘पंडित फाइनेंस’ का सदस्य बनने जा रहा हूं, सदस्यता फॉर्म खत्म हो गए तो मैं बेकार रह जाऊंगा।’
‘बेकार ?’
‘हां, हर दो महीने बाद होने वाले पंडित फाइनेंस के ‘लकी ड्रा’ में एक कार निकलती है - सदस्य बनने के बाद ही तो मैं ‘कार वाला’ बन सकूंगा।’
और चित्रहार का पांचवा गाना शुरू।
दर्शक अभी तक ‘पंडित फाइनेंस’ के बारे में ही सोच रहे हैं। रात को, सोने से पहले। रेडियो-ट्रांजिस्टर पर लोगों ने एक बार पुनः सुबह वाले डायलॉग्स सुन लिए।
गर्ज यह कि - पंडित फाइनेंसर्स का नाम और उसकी आकर्षक स्कीम जबरदस्ती लोगों के जेहन में ठूंसी जाने लगी-यह क्रम एक महीने तक चला और एक महीने बाद सारी दिल्ली जानती थी कि दिल्ली में ‘पंडित फाइनेंस’ है।
एक ऐसी संस्था जो सिर्फ एक बार लिए गए दो सौ भी रुपए के ब्याज के बदले हर सदस्य को चौरासी महीने तक लगातार हर महीने निकलने वाले ‘लकी ड्रा’ में चांस देती है - हर महीने होने वाले ड्रा में आकर्षक इनाम हैं और हर दो महीने में विशेष आकर्षण-मारुति डीलक्स।
स्कीम का विस्तार यानी जो कागज केशव ने साजिद आदि को दिखाया था। उसकी नकल अगले पृष्ठ पर दी जा रही है-आजकल इसी मैटर के पम्फलेट, होल्डिंग्स पोस्टर और पर्दों से पूरी दिल्ली अटी पड़ी है।
सुबह का अखबार हो या शाम का। पहले पेज पर विज्ञापन जरूर होगा।
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